मानव बुद्धिमान व विवेकपूर्ण प्राणी है और इस कारण इसे कुछ ऐसे मूल तथा अहरणीय अधिकार प्राप्त रहते हैं जिसे सामान्यतया मानव अधिकार कहा जाता है। चूँकि ये अधिकार उनके अस्तित्व के कारण उनसे सम्बन्धित रहते हैं अतः वे उनमें जन्म से ही निहित रहते हैं। इस प्रकार, मानव अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए होते हैं चाहे उनका मूल वंश, धर्म, लिंग तथा राष्ट्रीयता कुछ भी हो ये अधिकार सभी के लिए होते हैं वे आवश्यक हैं क्योंकि ये उनकी गरिमा एवं स्वतंत्रता के अनुरूप हैं तथा शारीरिक, नैतिक, सामाजिक और मौलिक कल्याण के लिए सहायक होते हैं। ये इसलिए भी आवश्यक हैं कि ये मानव के भौतिक तथा नैतिक विकास के लिए उपयुक्त स्थिति प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के बिना सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता। मानव-जाति के लिये मानव अधिकार का अत्यन्त महत्व होने के कारण मानव अधिकार को कभी-कभी मूल अधिकार, आधारभूत अधिकार, अन्तर्निहित अधिकार, प्राकृतिक अधिकार और जन्म अधिकार भी कहा जाता है।
मानव अधिकार को समाज में व्यक्तियों के व्यक्तित्व के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक होने के कारण निश्चित रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। संरक्षण की आवश्यकता राज्यों की सरकारों द्वारा मनुष्यों के क्रिया-कलापों पर नियंत्रण में वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई है, जिसे किसी भी तरह वांछनीय नहीं माना जा सकता। मनुष्य की ओर से उनके अधिकारों के सम्बन्ध में संचेतना भी राज्यों द्वारा संरक्षण को आवश्यक बना दिया है। यह भी महसूस किया गया है कि सभी विधियों का कार्य चाहे वे राष्ट्रीय विधि के नियम हों अन्तर्राष्ट्रीय विधि के, मानवता के हित में उनका संरक्षण करने के लिए ही होना चाहिए।
मानव अधिकार या मानवाधिकार वास्तव में वे अधिकार हैं जो प्रत्येक मनुष्य को केवल इस आधार पर मिलते हैं कि उसे मनुष्य के रूप में जीवित रहने के लिए उन अधिकारों की आवश्यकता होती है।
मानव अधिकार की परिभाषा (Definition of Human Rights)
मेरी रोबिन्सन के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति को उसकी मौलिक स्वतंत्रताओं की संरक्षा एवं उसे प्राप्त करने के व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त अधिकार मानवाधिकार कहलाते हैं।”
मानवाधिकारों को प्राकृतिक अधिकार, मूल अधिकार, आधारभूत अधिकार अथवा अन्तर्निहित या जन्मजात अधिकार भी कहा जाता है।
निष्कर्ष-वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय संरचना में मानव अधिकारों महत्व को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है क्योंकि इनका सम्बन्ध नैतिक, विधिक एवं राजनीतिक है। मानव अधिकार विधिक है क्योंकि इनमें अन्तर्राष्ट्रीय संधियों में वर्णित अधिकारों एवं बाध्यताओं का क्रियान्वयन अन्तर्रास्त होता है, यह नैतिक इसलिए है क्योंकि मानव अधिकार, मानव गरिमा का संरक्षण करने की मूल्य आधारित प्रणाली है और बृहत्तर (Larger) अर्थ में राजनीतिक है ये व्यक्तियों पर सरकारों की शक्ति को सीमित करने हेतु संक्रियाशील होते हैं। फिर भी, किसी व्यक्ति को यह स्वीकार करने में संकोच नहीं होना चाहिए कि इसकी प्रकृति एवं इन अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत विधि के अन्तर्गत संरक्षण के सम्बन्ध में कई पहलू भ्रमात्मक है।