विगत वर्षों में हुए औद्योगिक विकास तथा नगरीकरण एवं जनसंख्या में हुई असीमित वृद्धि ने पर्यावरण के विभिन्न घटकों को कई प्रकार से प्रदूषित कर दिया है, जिसके कारण हमारे लिए उपयोगी प्रमुख पदार्थ एवं गैसें; जैसे-जल, वायु, मृदा का संगठन बदलने लगा है। ये हमारे लिए घातक होते जा रहे हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि पर्यावरण प्रदूषण को रोका जाय। इसके लिए लोगों में जागरूकता लानी होगी तथा कुछ ऐसे नियम बनाने होंगे जिसके कारण लोग पर्यावरण प्रदूषण की हानियों को समझें तथा प्रदूषण को कम करने का उपाय करें। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियन्त्रण के भारत सरकार ने कुछ नियम बनाये हैं जिन्हें अधिनियमों (Acts) के नाम से जाना जाता है।
विश्व स्तर पर पर्यावरणीय रक्षण के बारे में सही जागरूकता मानवीय पर्यावरण पर स्टॉकहोम (स्वीडन) में जून, 1972 में संयुक्तराष्ट्र की सभा में हुई। यह पर्यावरणविदों (environmentalists) के अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को पर्यावरणीय समस्याओं को योग्यता से सुलझाने के लिए ध्यान केन्द्रित कर सकता है। इस बैठक में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने विशेष रुचि ली तथा मानवीय पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार के लिए उचित कदम उठाने की शुरूआत की।
विगत वर्षों में हुए औद्योगिक विकास तथा नगरीकरण एवं जनसंख्या में हुई असीमित वृद्धि ने पर्यावरण के विभिन्न घटकों को कई प्रकार से प्रदूषित कर दिया है, जिसके कारण हमारे लिए उपयोगी प्रमुख पदार्थ एवं गैसें; जैसे-जल, वायु, मृदा का संगठन बदलने लगा है। ये हमारे लिए घातक होते जा रहे हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि पर्यावरण प्रदूषण को रोका जाय। इसके लिए लोगों में जागरूकता लानी होगी तथा कुछ ऐसे नियम बनाने होंगे जिसके कारण लोग पर्यावरण प्रदूषण की हानियों को समझें तथा प्रदूषण को कम करने का उपाय करें। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियन्त्रण के भारत सरकार ने कुछ नियम बनाये हैं जिन्हें अधिनियमों (Acts) के नाम से जाना जाता है।
विश्व स्तर पर पर्यावरणीय रक्षण के बारे में सही जागरूकता मानवीय पर्यावरण पर स्टॉकहोम (स्वीडन) में जून, 1972 में संयुक्तराष्ट्र की सभा में हुई। यह पर्यावरणविदों (environmentalists) के अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को पर्यावरणीय समस्याओं को योग्यता से सुलझाने के लिए ध्यान केन्द्रित कर सकता है। इस बैठक में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने विशेष रुचि ली तथा मानवीय पर्यावरण संसद ने जल की रक्षा तथा सुधार के लिए उचित कदम उठाने की शुरूआत की।
जल (प्रदूषण का निवारण तथा नियन्त्रण) एक्ट, 1977 जल उपभोगी उद्योगों पर कर के इकठ्ठा करने के लिए बनाया गया। यह कर राज्यों को वितरित किया जाता है। जल और वायु एक्ट CPCB और SPCBS द्वारा लागू किये गये। पर्यावरण (रक्षण) एक्ट, 1986 के विधान पर परिणाम से केन्द्रीय तथा राज्य बोर्ड को अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ दी गई हैं।
पर्यावरण (रक्षण) एक्ट, 1986 [The Environment (Protection) Act, 1986] यह एक्ट पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार के लिए प्रचारित तथा इससे सम्बन्धित विषयों के लिए प्रदान किया गया। एक्ट में 26 सेक्शन चार अध्यायों में वितरित हैं और पूरे भारत तक विस्तृत हैं। यह एक्ट केन्द्रीय सरकार को पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्नलिखित कार्यों को सुचारू रूप से चलाने की शक्तियाँ प्रदान करता है
(अ) पर्यावरण की गुणता बचाने तथा सुधारने के लिए और (ब) पर्यावरण प्रदूषण हटाने, नियन्त्रण तथा उपशमन के लिए अन्य शक्तियों के अलावा, केन्द्रीय सरकार को अधिकार होने चाहिए। (i) पर्यावरणीय प्रदूषण के निवारण, नियन्त्रण तथा उपशमन के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के आयोजन तथा सम्पादन की, (ii) पर्यावरण की गुणता के लिए इसके विभिन्न रूपों में मानक बनाना, (iii) विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के लिए मानक बनाना, (iv) क्षेत्रों का प्रतिबन्ध जिसमें उद्योग प्रचालन तथा प्रक्रम नहीं किये जाने चाहिए या किसी सुरक्षा बचाव (safeguards) से किये जायें, (v) दुर्घटनाएँ जो पर्यावरणीय प्रदूषण कर सकती हैं, के निवारण के लिए प्रक्रिया तथा रक्षा बनाये, (vi) खतरनाक पदार्थों के हस्तन के लिए प्रक्रिया तैयार करने के लिए, (vii) उन निर्माण प्रवर्धी, वस्तुओं तथा पदार्थों का परीक्षण जो पर्यावरणीय प्रदूषण कर सकते हैं, (viii) पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्याओं से जुड़ी जाँच और अनुसन्धान प्रायोजक करने के लिए, (ix) पर्यावरणीय प्रदूषण पर जानकारी का संचयन तथा प्रकीर्णन और (x) पर्यावरणीय प्रदूषण के निवारण, नियन्त्रण तथा उपशमन से जुड़ी निर्देशिका (manuals), विधि संहिता (codes) या पथ प्रदर्शिका (guides) का निर्माण ।
वायु तथा जल कानून में संशोधन (Amendments in Air and Water Acts) वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियन्त्रण) एक्ट, 1981 में संशोधित किया गया। 1987 में कार्यान्वयन के दौरान आने वाली परेशानियों को हटाने के लिए, कार्यान्वित करने वाली एजेन्सियों को अधिक अधिकार देने के लिए एक्ट की व्यवस्था को तोड़ने वालों के लिए सख्त जुर्माना लगाने के लिए व्यवस्था की गई है। मुख्य बिन्दु यह भी था कि वायु प्रदूषण की परिभाषा संशोधित करके भी शामिल किया जाये। इसलिए वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियन्त्रण) संशोधन एक्ट, 1987 भी है।
जल (प्रदूषण का निवारण तथा नियन्त्रण) एक्ट, 1974 भी 1988 में संधोधित किया गया। महत्वपूर्ण संशोधन का जल प्रदूषण के निवारण तथा नियन्त्रण के लिए केन्द्रीय/राज्य बोर्ड को पुनः नाम देना केन्द्रीय / राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड क्योंकि बोर्ड वायु प्रदूषण से भी सम्बन्ध रखते हैं। CPCB को कुछ अधिक अधिकार दिया गया। बोर्ड को दोषपूर्ण संस्थाओं की जल तथा विद्युत आपूर्ति बन्द या रोकने का अधिकार दिया गया। दोषियों के विरुद्ध बोर्ड ने 60 दिनों का नोटिस देने के पश्चात् नागरिक अपराधी केस दर्ज करा सकते हैं। उद्योग की स्थापना के समय भी व्यक्ति को बोर्ड से स्वीकृति लेनी होगी। इस प्रकार जल (प्रदूषक का निवारण तथा नियन्त्रण) संशोधन एक्ट, 1988 भी बना है।